सुबह की हल्की रोशनी में, वह कुछ पल अपने लिए रखती थी। न कोई हड़बड़ी, न कोई सूची, बस एक शांत सांस और धीरे-धीरे दिन का स्वागत।
वह हर दिन सिर्फ़ एक छोटा काम चुनती थी — जैसे 10 मिनट टहलना, एक पेज पढ़ना, या बस चाय के कप के साथ चुपचाप बैठना। ये छोटे-छोटे कदम उसके भीतर स्पष्टता और स्थिरता लाते थे।
उसे एहसास हुआ कि सुबह को जल्दी जीतने की ज़रूरत नहीं है। असल जीत है — अपने भीतर के शांति के स्थान को पहचानना और उसे रोज़ थोड़ा मजबूत करना।
अगर आप भी चाहें, तो कल सुबह बस एक छोटा कदम चुनिए। जल्दी नहीं, बस निरंतरता।